Sakhi Bhagat Jaidev Ji Di || Bhagat Jaidev Ji An Introduction

Sakhi Bhagat Jaidev Ji Di || बहुत मना करने के बाद

ठग बोले हम और भगत जी एक राजा के पास नौकरी करते थे। राजे ने किसी कारण भगत को जान से मारने ..

  • माता :- बामदेवी जी
  • पिता :- भैई दास
  • जन्म स्थान :-गांव कंदोली ( बीरभूम बंगाल )
  • परिवार :- पद्मावती

sakhi bhagat jaidev ji diSakhi Bhagat Jaidev Ji Di

श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी में 15 भगतों की बाणी दर्ज है। इन 15 भगतों में Bhagat jaidev ji का नाम बहुत अदब से जाता है। गुरु ग्रंथ साहिब जी में आपके 2 अंकित है। भगत जी संस्कृत के मशहूर कवि हुए है। आज हम आपके साथ sakhi bhagat jaidev ji di सांझी करेंगे। भगत जी का जन्म पिता भैई दास माता बामदेवी जी के गृह बंगाल के गांव कंदोली में हुआ। यह स्थान आजकल बीरभूम के नाम से मशहूर है। आप जी के पिता जी कनौजी ब्र्हामण थे। भगत जी के बारे में यह भी कहा जाता है के 1170 ई : के मशहूर राजा लछमन देव के दरबार में पांच रत्नो में से एक थे।

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भगत जी का जीवन sakhi bhagat jaidev ji di 

आप जी ने बचपन से ही बहुत ज्यादा मेहनत की। बचपन में ही आपकी ज्यादा रुचि विद्या सीखने में रही। जिसके चलते आप जी आगे चलकर संस्कृत में बहुत महारत हांसल कर ली। भगत जी ने गांव गांव जाकर सारे देश का भृमण किया। ताजुब की बात यह थी की भगत जी ने दूसरे लोगो की तरह अपने पास ज्यादा समान नहीं रखा।कोई कलम दवात ,कोई कपड़ो के दोशाले कुछ नहीं। रखा तो सिर्फ एक पानी पीने का बर्तन और निकल दिए भिखारी का भेस बना भृमण करन। जहां रात होती वहीं पेड़ की नीचे विश्राम कर लेते।

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शादी sakhi bhagat jaidev ji di

एक बात बहुत मशहूर है भगत जी के जीवन की। वह हम आपको बताए बिना आगे नहीं जाएगे। जगन्नाथ के एक अग्नहोत्री ब्र्हामन के गृह में बहुत मन्नतों के बाद एक लड़की का जन्म हुआ। लड़की का नाम पद्मावती रखा गया। लड़की बहुत संस्कारी थी। उसके पिता ने लड़की को मंदिर में अर्पण करने का मन बना लिया। जब वह मंदिर में गया तो दूसरे ब्रह्मणो ने कहा इसको जै देव को अर्पण कर दो। वह लड़की को लेकर आपके पास आया। जब भगत जी को पता चला तो वह बोले के मैं तो खुद मांग कर खाता हूँ इसके लिए खाना कहां से लाऊगा। लड़की का पिता नहीं माना और वह लड़की को आपके पास यह बता शोड गया के आज से भगत ही तुम्हारे स्वामी है।

ठगो की लूट Sakhi Bhagat Jaidev Ji Di

भगत जी ने बंधे मन से गृहस्थ जीवन शुरआत करनी पड़ी। भगत जी ने पास में ही एक कुटिआ बनाई वहां ही एक मूर्ति स्थापित की। भगत जी ने वहां ही “गीत गोविंद” लिखना अरंभ किया। आपकी लिखी यह पुस्तक आज भी बहुत मशहूर है। उसके बाद आप जी ब्रिंदाबन गए।वहां से आपजी जयपुर के लिए चले। रास्ते में आपको ठग मिल गए। उन्होंने भगत से सारा समान लूट कर , हाँथ काट कर कुंए में फेंक दिया। उसी रास्ते से क्रोंच उटकल का राजा गुज़र रहा था। जब उसको भगत जी का पता चला तो उसने आपको बाहर निकाला।अपने साथ ही महल में लै आया। राजा के पूछने पर भगत जी ने उन ठगो के बारे में कुछ नहीं बताया।

ठगो की मृत्यु Sakhi Bhagat Jaidev Ji Di

राजा को यह कह संतुश्ट कर दिया कि में पैदा ही ऐसा हुआ था। भगत जी राजा को बोले तुम साधु संतो की सेवा करा करो इससे तुम्हारे राज्य पर प्रभु की कृपा बरसेगी। राजा ने ऐसा ही किया। ठगो को जब इसके बारे में पता चला तो वह भेष बदल साधु बनकर राजा के पास आए। भगत उन्हें पेहचान लिया लेकिन कुछ नहीं बोले। उल्टा उनकी सेवा बहुत अच्छे से की। रस्ते में जाने के लिए सिपाई भी भेजे। रस्ते में चलते चलते सिपाही बोले भगत जी से तुम्हारा क्या रिश्ता है जो तुम लोगो की ईतनी सेवा की। बहुत मना करने के बाद ठग बोले हम और भगत जी एक राजा के पास नौकरी करते थे।

Sakhi Bhagat Jaidev Ji Di

राजे ने किसी कारण भगत को जान से मारने की सजा दी लेकिन हमने उनके हाँथ काट कर कुँए में फेंक दिया। ठगो की इतनी बात बोलने के तुरंत बाद सभी ठग किसी न किसी कारण मर गए।सिपाही यह देख घबरा गए। सिपाही भाग कर राजा के पास आए रास्ते में हुई सारी घटना बताई। राजा ने भगत जी से सारी बात पूछी। भगत जी ने सब बता दिया। जब भगत जी ने अफ़सोस जताते हुए दोनों हाथ जोड़े तो वह पहले की तरह ठीक हो गए। राजा यह सभ देख हैरान रह गया। राजा ने भगत जी को अपने पास ही रहने की बिनती की। पद्मावती को रानी के महल में बुला लिया गया।

पद्मावती की मृत्यु Sakhi Bhagat Jaidev Ji Di

राजा ने आदेश दिया की भगत जी के परिवार को किसी भी तरह की कोई कमी नहीं होनी चाहए। एक दिन रानी के भाई का स्वर्गवास हो गया उसकी रानी भी उसकी चिता में जल कर मर गई। यह बात रानी ने पद्मावती को बताई। पद्मावती बोली ऐसे मरने को प्रेम नहीं कहते प्रेम वह होता जब वह राजा के मरने की खबर से ही प्राण शोड जाती। रानी को यह बात चुभी। उसने एक नौकर को यह सिखा दिया की तुम पद्मावती को ऐसे बोलो। पद्मावती भगत जी की मृत्यु की खबर सुन कर ही स्वास छोड़ गई। राजा को इस बारे पता चला उसने रानी को बहुत डांट लगाई। भगत जी पद्मावती के मृत्यु शरीर के पास बैठ गीत गोविंद गाने लगे।

Sakhi Bhagat Jaidev Ji Di

तभी पद्मावती उठी , भगत जी के साथ मिलकर गीत गाने लगी। वहां मौजूद लोग हैरान परेशान देखते रह गए। वह राजा से विदा ले कंदोली अपनी झोपडी में आ गए। भगत जी ने वहां रहते ही पद्मावती का साथ साधु संतो की सेवा करते अपना जीवन गुजार दिया। ऐसे थे हमारे भगत जयदेव जी। आपको यह जानकारी कैसी लगी इसके लिए हमे कमेंट करे। हमे अपनी राय जरुर लिखे।

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