History of guru gobind singh ji in punjabi language || 100% Orignal punjabi

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संक्षेप में ||

अल्लाह यार खां योगी लिखते है के guru gobind singh ji का जीवन लासानी था। आप की पूरी ज़िंदगी बेमिसाल संघर्श थी। वह भी इस तरह का जिसकी दुनिआ में कोई मिसाल नहीं। आप जी ने अपनी जीवन गाथा खुद लिखी। जिस आयु में एक आम इंसान अपनी ज़िंदगी के सभी सुख लेता है उस 42 साल की आयु में आप पूरा परिवार का बलिदान देकर परमात्मा के दर पर अरजोई करने लगे थे। आप जी उच्च कोटि के विद्वान ,शास्त्र विद्या में सर्ब कला सम्पूर्ण ,तपस्वी में उच्च कोटि के तपस्वी , ग्रेह्स्थी जीवन में सम्पूर्ण ,धार्मिक आगू ,महान चिंतक,महान कवी,मेरी कलम में वह ताकत नहीं जो आप के गुणों को लिख सके। आप जी की जीवन गाथा सुनकर मन सहजे ही विसमाद में चला जाता है। बहुत सा सहित आप के जीवन पर लिखा जा चुका है लेकिन वह सब भी तुछ मात्र ही है। इस लिए बहुत सरे विद्वान् आपको दुस्ट दमन guru gobind singh ji बुलाते है।

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guru gobind singh ji का जन्म नोवे पातशाह गुरु तेग बहादुर जी के गृह में उनकी शादी के 27 साल बाद माता गुज़री जी की कोख में 22 दसंबर 1666 ई : ( पोह सुदी सप्तमी संमत1723 बिक्रमी )दिन बुधवार समय आधी रात के बाद ( भट्ट वहीआ में लिखे अनुसार ) को पटना साहिब ( बिहार प्रांत की राजधानी ) में हुआ। आप जी के लिखे बचित्र नाटक में खुद की गवाही भरते नज़र आते है। आप जी के जन्म समय ओरंगजेब का राज था। चारो तरफ लोग जुलम के शिकार थे। जन्म के समय आप जी के पास मामा किरपाल चंद थे और गुरु तेग बहादुर जी सिखि प्रचार के लिए बाहर गए थे। आप जी के आगमन पर सभी ने बहुत ख़ुशी मनाई। पटने में आप 6 साल (1666 ई: से 1672 ई:) तक रहे । फिर आप जी चक्क नानकी ( आनंदपुर साहिब ) आ गए। जहाँ आप जी 1672 ई: से 1675 ई: तक रहे।

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पटने शहर में रहते आप जी ने बिहारी भाषा सीखी। चक्क नानकी ( अनंदपुर साहिब )में माता जी से गुरमुखि भाषा क्या ज्ञान लिया। आप ने अरबी और फ़ारसी भाषा मुंशी पीर मोहमद काज़ी से सीखी। संस्कृत भाषा आप जी ने मुंशी साहिब चंद से सीखी। आप यह सब भाषाए 2 साल में सीख गए। उच्च कोटि की पढ़ाई आप जी ने मटन शहर के प्रसिद्ध संस्कृत के विद्वान् पंडित किरपा सागर दत्त से ली। आप जी ने गुरु ग्रंथ साहिब जी का अध्यन गुरु तेग बहादर जी आपके पिता जी के पास लिया। गुरमुखि लिखने का अध्ययन आप जी ने विद्वान भाई हरजस राय जी के पास बैठकर सीखा। अक्षर विद्या के साथ साथ आप जी ने शास्त्र विद्या भी सीखी। घोड़ सवारी ,दनुष विद्या ,नेजा चलाना,तैरना यह सब आप जी ने भाई बजर सिंह शाहदरा,परगना वजीराबाद से सीखी। आप जी ने 9 वर्ष की आयु तक जगत की 64 विद्या सीख ली थी।

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guru gobind singh ji का गृहस्थ जीवन

guru gobind singh ji की सगाई लहोर के रहने वाले भाई हरजस जी की बेटी जीतो के साथ 8 साल की आयु 1673 ई: में हुई। गुरु तेग बहादर जी की शहीदी के बाद आप ने सिख पंथ की संभाल की। जब आप की आयु 11 साल की हुई तो आप के अनंद कारज 21 जून 1677 ई: को बीबी जीतो के साथ हुए। यह सब कारज अनंदपुर साहिब के पास गुरु के लहोर में हुए। आप जी की दूसरी शादी 4 अप्रैल 1684 ई: को बिजवाड़ा,जिला होशिआरपुर के रहने वाले राम शरण दास खत्री जी की बेटी बीबी सुंदरी के साथ हुई। दूसरी शादी की जानकारी बहुत कम मिलती है। आप जी के घर 26 जनवरी 1687 ई: पौंटा साहिब में माता सुंदरी जी की कोख से पहले बेटे साहिबज़ादा अजीत सिंह का जन्म हुआ। आप जी के घर 4 साहिबज़ादे हुए। साहिबज़ादा जूझार सिंह ,साहिबज़ादा ज़ोरावर सिंह और साहिबज़ादा फतह सिंह।

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guru gobind singh ji का अधियतमक जीवन

guru gobind singh ji ने छोटी आयु में ही धर्म को समझ लिया था। आप जी ने 9 साल की आयु में कश्मीरी पंडितो की मदद के लिए प्रेरा। युद्ध के चलते भी कभी धार्मिक जीवन में कमी नहीं आने दी। गुरु घर की मर्यादा को एक सूत्र में परो के रखा। उस सूत्र में आप ने वैसाखी के दिन 30 मार्च 1699 ई: को केसगड़ साहिब ( अनंदपुर साहिब ) खालसा पंथ की सिर्जना की। आप जी ने पांच प्यारे साजे। पांच प्यारे History of guru gobind singh ji in punjabi language:-लहौर के रहने वाले भाई दया सिंह जी , दिल्ली के भाई धर्म सिंह ,भाई हिंमत सिंह जगन्नाथ के रहने वाले थे,भाई मोहकम सिंह जी द्वारका के रहने वाले थे ,भाई साहिब सिंह जी बिदर के रहने वाले थे।

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आप जी ने सब से पहले पोंटा साहिब में चंडी चरित्र के 227 छंद लिखे साथ में चंडी चरित्र की 55 पोडिया रची। वहाँ आप जी ने कृष्णावतार ,शास्त्र नामा भी लिखे। आप जी ने दसम ग्रंथ की रचना की जिस में 1719 छंद है। इसमें 16 प्रमुख रचनाए है। इसके 1428 अंक है। इसमें जाप साहिब ,अकाल उसतत,बचित्र नाटक ,चंडी चरित्र,चंडी चरित्र दूजा ,वार श्री भगोती जी की ,ज्ञान प्रबोध ,चौबीस अवतार ,रूद्र अवतार ,शब्द हज़ारे ,स्वये, खालसा मेहमा ,शास्त्र नाम माला ,चरित्र पख्यान ,ज़फरनामा और हकायत। पूरे काव बंध की गिणती 12357 है। आप जी ने दमदमा साहिब की धरती पर गुरु ग्रंथ साहिब का उल्लेख करवाया।

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guru gobind singh ji ने छोटी आयु में ही जंग जैसे हालात देखे। आप की तमाम आयु मनुष जाती के कल्याण में लगा दी। आप ने 25 साल की आयु में 18 युद्ध किए। दुनिआ में कोई ऐसा जरनैल नहीं हुआ होगा जिसको इतनी मुश्कलों का सामना करना पड़ा होगा। 9 साल की आयु में पिता साथ छूट गया,मसंदो का बुरा प्रचार , पहाड़ी राजो और मुगलो की हर रोज की छेडखानिया। छोटे लाल शहीद करवा सारा परीवार मनुष जाती के लिए कुर्बान कर दिया। इस तरह का जिगर तो बादशाह दरवेश गुरु गोबिंद सिंह जी ही कर सकते थे। तलवार बाज़ी और ध्नुष के आप बे मिसाल धनी थे। आप की कलम में इतनी ताकत थी की दुश्मन भी कील हो जाता। यह कहना गलत नहीं होगा जो आंनद जीवन हम लोग जी रहे है वह गुरु जी की क़ुरबानी की वजह से ही है। जो गुरु जी ने समाज को दिया उसका कोई भी क़र्ज़ नहीं उतार सकता।

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guru gobind singh ji का जोति जोत समा जाना

History of guru gobind singh ji in punjabi languageguru gobind singh ji अपने जीवन में दूसरी दक्षिण यात्रा में नांदेड़ गए। वहां आप ने प्रसिद्ध तांत्रिक माधो दास वैरागी का हंकार खतम किया। उसको बंदा सिंह बना 25 असु संमत 1765 बिक्रमी को पंजाब की तरफ भेजा। इस यात्रा में बहादर शाह आप जी के साथ था। वह ओरंगजेब के बाद बादशाह बना था। गुरु जी पर हमला करने के लिए वजीर खां ने गुरु घर के पुराने नमक हरामी पैंदे खां के पोत्रो को चुना। उनका नाम गुलशेर खां और जमशेद खां था। उनको दादा का बदला लेने के लिए उकसाया गया। पहले यह दोनों दिल्ली माता सुंदरी जी के पास गए। वहां उन्होंने गुरु जी का पता पूछा। फिर नांदेड़ में जाकर गुरु जी के दीवान में जाकर हाज़र होने लगे। एक दिन समय पाकर दोनों अपने दादा की गलती की श्रमा मांगी। इस तरह गुरु जी का विश्वास पाकर दोनों गुरु जी के पास रहने लगे।

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शाम के समय रहरास साहिब की समाप्ति के बाद गुरु जी पलंग पर लेटे थे के दोनों गुरु जी के पास आकर खड़े हो गए। हर रोज आते थे इसलिए किसी को शक भी नहीं हुआ। गुरु जी के पहरेदार लखहा सिंह के बाहर जाने की देर थी की उन्होंने गुरु जी पर हमला कर दिया। जमशेद खां ने पीठ पर दो हमले किये। सिंघो ने दोनों को झटका दिया। 6 अक्टूबर 1708 ई : को आप जी ने श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी के आगे पांच पैसे और एक नारियल रख गुरता गद्दी सौंप दी। घाव ज्यादा गहरे थे एक दिन ध्नुष की डोरी खींचते समय जख्मो से खून बहने लगा। आप जी भाई दया सिंह को बोले “असा को महा काल के तरफ से सद्दा आ गया है ,तुसा धीरज से काम लेना ,असी उसकी दरगाह में जाए रहे आ।

वाहेगुरु जी का खालसा ,वाहेगुरु जी की फतेह,

इस तरह सरबत खालसे को फतेह बुला कर 42 साल 9 महीने 14 दिन संसार की यात्रा करते हुए संमत 1765 कार्तिक सुदी पंचमी ( 7 अक्तूबर 1708 ई 🙂 को सचखंड चले गए।

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