guru ramdas ji history in punjabi
ezoic-pub-ad-placeholder-102" data-inserter-version="2">guru ramdas ji history in hindi
guru ramdas ji
“guru ramdas ji महाराज guru nanak dev ji” की चौथे स्वरुप जा कहलो पांचवे नानक थे।।
त्याग की मूरत ,निम्रता के पुंजः निमानयो के मान सतगुरु इलाही जोत महाराज जी के सम्पूर्ण जीवन आप को संक्षेप में बताने का प्रयतन करेंगे।।
guru ramdas ji history in hindi
जन्म ,वंशज और बचपन
संन 1531 इ : लहौर की चूना मंडी में आप के पहले बज़ुर्ग गुरदयाल सोढ़ी जी आए। उनके दो पुत्र थे दूसरे का नाम ठाकुर दास और उनकी पत्नी का नाम कर्मो था। मैकलफ बीबी जी का नाम जसवंती लिखते है। ठाकुर दास जी के घर 1500 ई: हरिदास जी का जन्म हुआ। उनकी पत्नी का नाम बीबी दया कोर था। शादी के 12 साल बाद इस दंपति के घर 25 सतंबर 1534 ई: को guru ramdas ji का प्रकाश हुआ। घर में सबसे बड़े होने के कारण आप जी का नाम जेठा रखा गया। फिर 2 साल बाद guru ramdas ji के भाई हरिदयाल जी का जन्म हुआ और उनके बाद आप जी की बहन रामदासी जी का जन्म हुआ।
आप जी की झलक मोहित करने वाली थी। हर समय खुश रहना आप के स्भाव में था। अभी 7 साल का समय गुज़रा था की आप के माता पिता जी का स्वर्गवास हो गया। छोटे भाई बहन के जिमेवारी आप के सिर आन पड़ी। आप जी ने रावी नदी के किनारे घुंघणीआं वेचना शुरु कर दी। जिमेवारी बहुत बड़ी थी। बचपन के घर को छोड़ना और पिता जी की दुकान को ताला लगा देख दिल को खींच सी पड़ती। 1541 ई: को आपकी नानी आप जी को बासरके नानके घर ले आए। छोटी सी आयु में ही आप ने दर दर की ठोकरे खाई।
guru ramdas ji history in hindi
बासरके नानके घर में आप जी 10 साल तक रहे। guru amar das जी वह भी बासरके के रहने वाले थे। guru amar das जी उन दिनों दूसरे नानक guru angad dev ji के हो गए और वह खंडूर साहिब ही रहने लगे। guru ramdas ji का मिलाप guru amar das जी के साथ नानके घर आने के समय ही हो गया था। नानके घर आने के बाद आप जी अपने नानी और छोटे बहन भाई की जिमेवारी उठा गांव के बाहर एक तलाब के किनारे घुँघनीआ बेच गुज़र बसर करने लगे।
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शादी और गोइंदवाल में 22 साल
guru amar das जी महाराज guru nanak dev ji के जोति स्वरूप होने के बाद जब बासरके आए तो सभी गाँव वाले बहुत खुश हुए। guru amar das जी जब गोइंदवाल साहिब परिवार को साथ लेकर चले उस समय भाई जेठा जी (guru ramdas ji) ने भी साथ जाने का मन बना लिया। उस समय आप जी की आयु 16 साल की हो गई थी। गोइंदवाल में आकर आप जी ने अपने जीवन में बहुत संघर्ष किया। अपने परिवार को पालने के लिए दोनों हाथो से ईमानदारी से काम करते। बचे समय में guru nanak dev ji महाराज के दर पर सेवा करते।
guru amar das जी आप जी की सेवा से बहुत खुश थे। दसंबर 1552 ई: की बात है। एक दिन बीबी मनसा देवी जी ने guru amar das जी से बीबी भानी जी के लिए वर की तलाश करने को कहा। उस समय guru amar das जी ने बीबी जी से पूछा कि आप जी को कैसा वर अच्छा लगता है। बीबी जी बोले भाई जेठे (guru ramdas ji) जैसा। guru amar das जी बोले जेठे जैसा तो फिर जेठा ही है। भाई जेठा जी से इस बारे में बात की गई और आप जी ने बहुत निम्रता से विनती परवान की। बीबी भानी जी से आप की शादी दसंबर 1552 ई: में हो गई।
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निम्रता की मूर्ति भाई जेठा (guru ramdas ji) जी को जब उनके सके संबंधी मिलने आए तो आप जी के सिर पर टोकरी देख बोले की तुमने हमारी कुल की बदनामी करवा दी। तुझे ससुर के जहाँ टोकरी उठाना अच्छा नहीं लगता। भाई जेठा जी उनको बोले गुरु घर में निमाणे होकर मन को टिकाव मिलता है। guru amar das महाराज जी को जब उन्होंने बोला तो वह बोले मुझे यह टोकरी नहीं निरंजनी शतर दिखाई दे रहा है जो भाई जेठा जी(guru ramdas ji) के ऊपर झूलना है। भाई जेठा (guru ramdas ji )जी ने भी ससुर जवाई के रिश्ते से ऊपर उठ 24 साल सेवा की। सेवा भी ऐसी कि 6 साल तक guru amar das के दिए हुए सिरपाओ को सजा कर रखा। बेपरवाह इतने के एक बार सुच्चे मोतिओं की माला उस मंगते को दे दी जो गुरु घर के सामने बैठ हर वक्त जोर जोर से शोर मचाता था। आप जी ने सोचा खबरे शांत हो जाए। आप जी के तीन बेटे हुए। सबसे बड़े तेज सुभाओ के मालिक प्रिथी चंद, बीच के मस्त स्भाव महादेव जी और सब से छोटे थे निम्रता की मूर्त guru arjan dev ji जी।
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लहोर में अकबर से मुलाकात
फरवरी 1566 ई: को अकबर अपने सौतेले भाई मिर्ज़ा हाकम के पंजाब हमले की इतलाह पाकर खुद लहोर आया। अकबर के लहौर आने की खबर सुन मिर्ज़ा हाकम वापस चला गया लेकिन अकबर खुद वहां 1 साल तक रुका रहा। अकबर जब मार्च 1566 ई: को वापस आने लगा तो सनातनी पंडितो ने महिजर नामा लिख अकबर को दिया। उसमे लिखा था की guru amar das सभी जाति धर्मो को एक कर रहा है। बिना किसी जात पात देखे लंगर लगा एक नया धर्म बनाता जा रहा है।
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अकबर ने guru amar das जी से इसका जवाब माँगा। उस वक्त guru amar das जी ने guru ramdas ji को इस बात के योग समझ अकबर का शक दूर करने के लिए भेजा। आप जी ने लहौर जाकर अपना ठिकाना चूना मंडी में किया। आप जी को बहुत अदब से लिजाया गया। जाते ही आप पर सवालों की बरसात होने लगी। सुच,भिट्ट,गायत्री मंत्र का जाप न करना, लंगर लगाने जिसके मुँह में जो आया सो बोलता गया।आप सभी की सुनते रहे लेकिन जब आपने ik onkar मूलमंत्र से शुरु किया तो किसी कोई सवाल ना रहा। उल्टा आपके चेहरे की तरफ सभी देखने लगे। ik onkar मूलमंत्र से अकबर बहुत प्रभावित हुआ और guru amar das जी के दर्शन करने की इच्छा प्रकट की। अकबर 1567 ई: के शुरु में दिल्ली को वापस जाते समय गोइंदवाल आया। guru घर आकर अकबर ने पंगत में बैठ लंगर शका उसके बाद guru amar das जी के दर्शन किए। उस समय अकबर ने 12 गाओं के पटे लिख दिए और हरेक वर्ष 1 लाख 20 हजार शुकराने के तौर भेजता रहा। इतहास कहता है की 12 गाओं के पटे एक आले में पड़े रहे।
गुर्त्ता गद्दी का मिलना
देखा जाए तो बहुत से अपना हक्क मानते थे गुरु गद्दी पर लेकिन जिनकी तरफ ज्यादा ध्यान जाता था संगत का वह थे भाई रामा जी और भाई जेठा जी (guru ramdas ji) guru amar das जी ने पर्ख के लिए भाई रामा जी को थड़ी बनाने को कहा जब थड़ी बनकर त्यार हो गई तो guru amar das जी बोले यह सही नहीं है इसको तोड़ दो। तोड़ने की बात सुन रामा जी इधर उधर की बाते करने लगे और कहने लगे जैसा आपने बोला था वैसी ही बनाई है ऊपर से आप को ही समझाने लग गए। guru amar das जी सब जानते थे। फिर वह भाई जेठा जी के पास आए और उनको भी बनी हुई थड़ी तोड़ने को कहा। बिना देरी किए भाई जेठा जी ने थड़ी को तोड़ दिया और भूल की माफ़ी मांगी। दूसरे दिन फिर वैसा ही हुआ। भाई रामा जी को दूसरी बार थड़ी को तोड़ने का बोलने पर वह भड़क गए।
guru ramdas ji history in hindi
कहने लगे इससे अच्छी नहीं बनाई जा सकती। आपको ही पसंद नहीं आ रही बाकी सभी ने तो खूब सराहा। जब भाई जेठा जी (guru ramdas ji) के पास गए तो तोडना शब्द अभी पातशाह जी के मुख में ही था की आप ने थड़ी को तोडना शुरु कर दिया। दुबारा फिर पातशाह जी से मुआफी माँग बोले आप कृपा करके मुझे बताए मेरे में इतनी मत कहाँ।
तीसरे दिन फिर इस तरह हुआ। भाई रामा ने तो यह तक बोल दिया की आपकी उम्र हो गई है आपको कुछ याद नहीं रहता। इससे अच्छी थड़ी कोई नहीं बना सकता। दूसरी तरफ जब भाई जेठा जी(guru ramdas ji) के पास गए तो पातशाह अभी बोलने ही वाले थे की भाई जेठा जी ने फिर थड़ी को तोडना शुरु कर दिया। पातशाह की चरणों को पकड़ लिया बोले की आप ही कृपा करो। यह बातें सुन पातशाह बहुत खुश हुए और भाई जेठा जी(guru ramdas ji) को गुरता गददी के असली हकदार माना।
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सतंबर 1574 ई: की एक सुबह guru amar das जी जब नीचे उतर रहे थे उस समय बीबी भानी जी को देख बोले। बेटा अगर रामदास गुज़र जाए तो क्या करोगे। बीबी भानी जी ने अपने सुहाग की निशानी उतार guru amar das जी के चरणों में रख दी और परमात्मा का हुकम मानने का कहा। बेटी की इतनी निश्ठा देख guru amar das बहुत खुश हुए और अपनी आयु में से 6 साल 11 माह 18 दिन की आयु guru ramdas ji को दे दी। उसी समय guru amar das जी बाउली साहिब की तरफ गए guru ramdas ji के सिर से बाबा बुढ़ा जी को टोकरी उतारने की बिनती की। साफ कपड़े मंगवाए 3 पैसे और एक नारीयल रख कर आप शब्द की स्थापना की। बाउली साहिब के सामने दीवान लग गए। चारो तरफ आयु और गुरता गददी की खबर फैल गई। दातू और दासू जी भी आए। उस समय guru amar das जी ने जो शब्द बोले वह भाई गुरदास जी ने रामकली सद नाम देकर अपने पास लिख लिया। जो आज भी guru granth sahib में 923 अंग में दर्ज है। guru amar das जी ने चेहरे पर चादर ओढ़ ली। देखते ही देखते वह जोति जोत समा गए। guru ramdas ji ने 1574 ई: से 1581 ई: के गुरयाई के 7 साल के समय अंदर 30 रागो में बाणी रची। शब्द 246 , अष्टपदिआं 33 , शंत 28 , जो श्री guru granth sahib ji में अंकित है।
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अमृतसर और अंत का समय
guru amar das के जोति जोत समा जाने के बाद guru ramdas ji खमोश से सभी से दूर दूर रहने लगे। संगत ने बाबा बुढ़ा जी को साथ ले guru ramdas ji के सामने guru घर की मर्यादा को आगे बढ़ाने की बिनती की। आप जी ने बिनती परवान की। पहले से चल रही लंगर और पंगत की मर्यादा को और आगे तक लेकर गए। आप जी के दर्शनों के लिए चौरासी सिद्धो की मंडली आए। किंगरी वाले जोगीओ की मंडली भी आई। तपे के पखंड को तोडा। दूसरी तरफ गोइंदवाल की आबादी बहुत घनी होने लगी। वेयास नदी के किनारे होने के कारण शाही फौज का रास्ता बण चुका था। आने जाने वालो की आँखों में चुबने लगा तो पंथ के लगतार बढ़ते कद को देखकर राजधानी की कमी महसूस हुई। guru amar das जी ने जीवत रहते ही
guru ramdas ji history in hindi
guru ramdas ji को वह स्थान का पता बताया जिस जगह अमृतसर की नीव रखी जानी थी। 1573 ई: के शुरु में तुंग गाओं के पूर्व गाओं सुल्तान के पश्चिम में साथ आती जमीन को सात सो रुपए अकबरी देकर जमीन खरीदी और amritsar का निर्माण करवाया। 1577 ई: में यह नगर चक रामदास का करकर बहुत लोकप्रिय हुआ।
जब अर्जन देव जी हर वक्त guru घर की सेवा में लीन रहते वहीं प्रिथी चंद हर समय चाल बाज़ी करते रहते और हर वक्त गुरु गददी पर अपना हक जताते। महादेव जी तो वैरागी स्भाव के थे वह किसी भी बात में नहीं पड़ते थे। भाई सहारी मल guru ramdas ji के चाचा के बेटे आप के बड़े भाई थे। वह लहौर रहते थे। उनके बेटे की शादी थे वह खुद चलकर बिनती करने आए। guru ramdas ji पहले प्रिथी चंद को शादी में जाने के लिए बोलै। वह आगे से पैसे के हिसाब की संभाल का बहाना बना मना करने लगा। महादेव से बोले तो उन्होंने ने उपदेश झाड़ना शुरु कर दिया। लेकिन जब guru arjan dev ji जी को कहा तो उन्होंने आपके हुकम को सर आँखों पर कहा। शादी खत्म हो चुकी थी। guru arjan dev ji जी समय निकाल संगत को गुरबाणी के साथ जोड़ते। जैसे जैसे समय गुज़र रहा था वैसे वैसे गुरु जी के दर्शन की प्यास बढ़ती जा रही थी।
guru arjan dev ji जी ने 3 खत लिखे। जिनमे से 2 guru ramdas ji को नहीं मिले। प्रिथी चंद ने चलाकी से वह संभाल लिए। उनका जवाब अपनी तरफ से ही लिखता रहा। जब तीसरा खत guru ramdas ji को मिला तो सचाई का पता चला। उस समय guru ramdas ji ने बाबा बुढा जी को guru arjan dev ji जी को बुलाने की बिनती की। 28 अगस्त 1581 ई: को guru arjan dev ji को गुरु गददी देकर गुरबाणी का पसार करने का उपदेश दिया। 1 सतंबर 1581 ई: को अमृतवेले हर रोज़ की तरह नितनेम कर संगत से आज्ञा मांगी। 6 साल 11 माह 18 दिन की आयु पूरी कर आप जोति जोत समा गए।