“To The Point warding Guru Harkrishan Sahib Ji History In Hindi | आयु छोटी होने के क
ारण जो भी आपके दर्शन करता वह आप का ही होकर रह जाता”Guru Harkrishan Sahib Ji History In Hindi
- माता पिता :- माता कृष्ण कौर जी ,गुरु हर राय जी ,
- जन्म स्थान :- कीरतपुर जिला रोपड़
- जन्म तिथि :- 7-7-1656 ई : , 8 सावन वदी 10 ,संमत 1713
- धर्मपत्नी :- कोई नहीं।
- संतान :– कोई नहीं।
- गुरयाई :- 6 -10 -1661 ई : , 8 कार्तिक संमत 1718 ( 2 वर्ष 6 माह )
- जोति जोत :- 30-3-1664 ई :, ( 3 वैसाख ,चैत्र सुदी 14 ,संमत 1721,भोगल दिल्ली )
- आयु :- 8 साल
- आपके समय के हुक्मरान :- ओरंगजेब
- Guru Harkrishan Sahib Ji History In Hindi
Guru Harkrishan Sahib Ji History In Hindi
जन्म और बचपन
साहिब श्री गुरु हर कृष्ण साहिब जी का जन्म 7-7-1656 ई : , 8 सावन वदी 10 ,संमत 1713 को माता कृष्ण कौर जी ,गुरु हर राय जी , के गृह में कीरतपुर साहिब जिला रोपड़ में हुआ। अभी तक जन्म तिथि को लेकर बहुत से विद्वानों में मत भेद है। यहां पर आपको जानकारी भट्ट वहीं के हिसाब से बताएगे। आप जी का बचपन गुरु जी की देख रेख में बहुत अच्छी तरह से व्यतीत हुआ। आपके चेहरे की दिखावट बहुत लुभावनी और हिर्दय बहुत कोमल था । आपका स्भाव गुरु पिता की तरह ही था। गुरु पिता को देख कर आप जी भी लंगर में आई संगत को भोजन बाटने की सेवा करते। छोटी सी आयु में आप में बड़ी आयु के बुजर्गो जैसी समझ और हिरदय विशाल था। आप जी का बचपन गुरु घर में सेवा सिमरण में बहुत अच्छा वयतीत हुआ।
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राजसी दशा
आप जी के जन्म के समय में गुरु घर के दिल्ली दरबार के साथ रिश्ते बहुत अच्छे थे। गुरु घर में सभी को एक नज़र से देखा जाता था चाहे कोई फकीर हो चाहे कोई राजा। एक बार शाहजहाँ के करीबी पुत्र दारा शिकोह को भयानक बीमरी ने जकड़ लिया। शाहजहाँ ने बहुत वेद हकीम बुलाए लेकिन दारा को कोई फर्क न पड़ा तब शाहजहाँ ने गुरु घर से मदद मांगी। उस समय गुरु हर राय साहिब जी ने जड़ी बूटिया भेजी जिस से ढारा स्वास्थ हो गया। कुछ समय बाद शाहजहाँ को मरा हुआ मान उसके पुत्र ओरंगजेब ने दारा पर दिल्ली हमला कर दिया। दारा कम फौजी ताकत होने की वजह से हार गया और अपनी जान बचा कर पंजाब में आ गया। उधर शाहजहाँ को ओरंगजेब ने ज़िंदा देख कैदी बना लिया। औरगजेब बहुत कटड़ स्भाव का शासक था। शाहजहाँ के रिश्ते जिसके साथ भी थे वह उसे अपना कटड़ दुश्मन मानता था। गुरु घर की दिन बा दिन बढ़ती लोक प्रियता से ओरंगजेब बहुत जलता था। ऐसे में गुरु घर के कुछ दोखी गुरु घर के खिलाफ शिकायते करने में मगन थे।
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गुरता का मिलना
गुरु घर के साथ ओरंगजेब के रिश्ते खराब होने के बहुत से कारण थे। जब राम राय को गुरु साहिब ने दिल्ली ओरंगजेब के बुलावे पर भेजा तो वह गुरु घर की मर्यादा भूल कर करामाते दिखाने लगा। कुछ गुरबाणी की पंक्तिओ को बदल दिया। जब इन सब बातो का गुरु साहिब को पता चला तो उन्होंने राम राय को कहा अब आने की कोई अवश्क्ता नहीं है। धीर मल की शिकायतें नो जलती पर घी का काम किया। राम राय की इन्ही हरकतों के कारण गुरु साहिब ने दुबारा उसे मुँह नहीं लगाया। उस के बाद गुरु हर राय साहिब जी ने गुरता अपने छोटे बेटे मतलब आप को साहिब श्री गुरु हर कृष्ण साहिब जी को दे दी। 6-10-1661 ई : को गुरु हर राय जी जोय्ति जोत समा गए। उस समय आपकी आयु केवल 5 वर्ष 4 माह थी। आप जी ने अपनी सूझ भूझ के साथ 1661 ई: से 1664 ई : तिक सिख समाज की रहनुमाई की। आप जी ने अपने गुरु पिता जी की तरह गुरु घर की मर्यादा को निभाया।
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जोय्ति जोत
आप जी की आयु छोटी होने के कारण बहुत से गुरु घर के दोखी गलत प्रचार करने लगे। लेकिन था सब उनकी सोच के उल्ट। जो भी संगत रुप में आपके दर्शन करता वह आप का ही होकर रह जाता। दिन बा दिन संगत दोगनी चौगनी होने लगी। आप जी के साथ 2200 घोड़ सवार हर समय मौजूद रहते। आपके खिलाफ ओरंगजेब के पास शिकायते की गई लेकिन इन सब का आप पर कोई असर नहीं हुआ। आपके पास जसवंत राय ,गेंदा मल , भाई संत राम जी , भाई सदा मल , भाई राम लाल रोपड़ के रहने वाले ,रोपड़ के फकीर नूर दीन , माला शेख , मुहमद बख्श , नवे शहर से भाई संगतीआ , भाई पंजाबा , भाई भीम चंद ,भाई शाही राम , भाई विशंबर दियाल , भाई महेश सजन , भाई गजन , भाई रामा ,भाई काहना आप जी के दर्शन कर तृप्त हुए।
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इनके इलावा बहुत से गुरु घर के श्रद्धालु अपने अपने तरीके से आपके दर्शन करने आए। आपको दिल्ली से बुलावा आया तो आप कुछ सिखो के साथ सलाह मशवरा कर दिल्ली चले गए। पंजोखरा के रहने वाले पंडित लाल चंद का अभिमान शज्जु से गीता के अर्थ करवा कर तोडा। दिल्ली में आप ने ओरंगजेब से मिलने से साफ़ इंकार कर दिया था। बहुत कोशिश की ओरंगजेब ने पर आप उससे नहीं मिले। उन दिनों दिल्ली में चेचक की बीमारी फैल गई।आप जी इस भयानक बीमारी की चपेट में आ गए। आप जी ने राजा जय सिंह का महल छोड़ जमना के पास आ डेरा किया। बीमारी का पता चलते बहुत सी संगत आपके पास जुड़ने लगी। आप जी ने सभी को गुरबाणी के साथ जुड़ने का उपदेश दिया। गुरु घर की चलती मर्यादा के अनुसार आप जी ने पांच पैसे मंगवाए और हाथो से परकर्मा कर बोले ” बाबा बकाले ” में। आप जी 30-3-1664 ई :, ( 3 वैसाख ,चैत्र सुदी 14 ,संमत 1721,भोगल दिल्ली ) जोय्ति जोत समा गए।
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