guru arjan dev ji shaheedi story in punjabi || ਸ਼੍ਰੀ guru arjan dev ji ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ ਬਾਰ&#x
A47; ਵਿਸਤਾਰ ਬਾਰੇ ਦੱਸਣ ਦਾ ਯਤਨ ਕਰਾਂਗੇ।guru arjan dev ji shaheedi story in punjabi and hindi
guru arjan dev ji shaheedi story in punjabi
चंदू का दिल्ली दरबार में शिकायत करना
चंदू के चाचा का बेटा जो रिश्ते में भाई लगता था उसका नाम कान्हा था। कुछ साधु सन्तो को साथ लेकर दिल्ली दरबार में शिकायत करने की सोच ही रहा था की उसकी मृत्यु हो गई। शिकायत का कारण था गुरु जी द्वारा श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी में बाणी दर्ज कराने की जिद। दूसरा कारण था गुरु जी का संगत के कहने पर चंदू की लड़की का रिश्ता ना मंज़ूर करना। कियोंकि चंदू ने कहा था की चुबारे की ईंट सुराख़ में लगा आए इस बात का संगत को बुरा लगा। इस वजह से चंदू की लड़की का रिश्ता शूट गया।
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इस बात से खफा चंदू आए दिन गुरु घर की शिकायते दिल्ली दरबार में करता रहता था। उसने अपने साथ गुरु घर से खुंदक रखने वालो की एक जमात बना ली थी। लेकिन बादशाह अकबर गुरु घर का बहुत बड़ा श्रदालु था। वह सब जानता था और इनकी बातो में वह ध्यान नहीं देता था। अकबर ने खुद लंगर और पंगत का आंनद लिया था और वह गुरु घर को अच्छी तरह जानता था।जितना समय अकबर जिंदा रहा उतनी देर तो दिल्ली दरबार से गुरु घर के रिश्ते अच्छे रहे। 17 अक्टूबर 1605 इ: को आगरे में अकबर की मृत्यु हो गई। 24 अक्टूबर को जहाँगीर राज गददी पर बैठा।
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जहाँगीर का स्भाव
जहाँगीर का स्भाव सब से अलग था। जहाँगीर इतना क्रूर था की छोटी सी बात पर भी खाल उतरवा देता था। आसान भाषा में कहा जाए दिमागी पागल था। हर रोज उलटे सीधे फरमान देता रहता था। बादशाही के नशे में चूर जहाँगीर कानों का बहुत कच्चा इंसान था। और उसकी इस कमी का फयदा गुरु घर के दुश्मनो ने अच्छी तरह लिया।जहाँगीर ने अपनी लिखतों में अपने बारे में बहुत कुछ लिखा है। उसकी लिखते को पढ़ने पर पता चलता है की वह एक साधु को मिलने के लिए नंगे पाँव चला गया था। उसने अजमेर शरीफ एक बहुत बड़ा देग बनवाई जिसमे 1500 लोगो का भोजन एक साथ बन सकता था। दूसरी तरफ उसने तलाब पुष्कर की जगा मंदिर के बुत तक को तोड़ दिया था। उसकी मानसिक हालत सिर्फ मुसलमान ही देखना चाहती थी।
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गैर मुसलमान से उसका रवैया बहुत घटिआ था।दिन बा दिन गुरु घर की बढ़ती लोकप्रियता उसको बहुत सता रही थी और गुरु घर के दुश्मन उसको और भड़का रहे थे। इन गुरु घर के दोखिओं में नक्शबंदीआ का बहुत हाथ था। इनका आगू शेख अहमद सरहंदी था जो अपने आप को इस्लाम का रखवाला अखवाता था और गुरु घर को अपना दुश्मन मानता था। पंजाब में सिख धर्म के दिन बा दिन बढ़ने के कारण सखी सर्वेरिओ को बहुत नुकसान हो रहा था। वह भी गुरु घर के लिए चाल चलने लगे थे। इनको शोड कर बहुत से सिखी को प्यार करने वाले लोग सिख बन गए थे। उनको सिख धर्म का परचार करते देख सखी सर्वरीए जलन महसूस करते थे।दिल्ली दरवार में उस समे बहुत अशांति शाई थी। उसका कारण था शेह्ज़ादा खुसरो।
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शेह्ज़ादा खुसरो की बग़ावते
जब जहाँगीर गददी पर बैठा तो बहुत सी बग़ावते हुई।शेह्ज़ादा खुसरो राजगद्दी पर अपना अधिकार समझता था। उसने जहाँगीर का बहुत विरोध किया। जहाँगीर खुसरो की इस हरकत पर बहुत भड़क गया और उसको जान से मारन का फरमान सुना दिया। खुसरो मौका संभाल पंजाब की तरफ भाग गया।कुछ दिन बचता बचाता खुसरो अपने साथिओ के साथ लाहौर की तरफ चला गया। लेकिन खुसरो के बुरे समय ने उसका साथ न दिया आखिर 6 अप्रैल 1606 इ: को भागा 27 अप्रैल 1606 इ :को लाहौर के रस्ते में ही पकड़ा गया।जहाँगीर भी खुसरो का पीछा कर रहा था। जिन लोगो ने खुसरो का साथ दिया उनको बहुत भयनक सजा देकर खत्म करता आ रहा था। खुसरो की बगावत का गुरु घर के दुश्मनो ने फयदा लेने की सोची। नक्शबंदीओ के आगू शेख अहमद सरहंदी ने गुरु अर्जन देव जी का नाम खुसरो की बगावत के साथ जोड़ दिया जबकि गुरु जी जहाँगीर के गद्दी पर बैठने के बाद खुसरो को कभी मिले ही नहीं।
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बगावत के समय शाही फौज भी उसका पीछा कर रही थी और जब खुसरो ने बयास नदी गोइंदवाल से पार की उस समय गुरु अर्जन देव जी गोइंदवाल नहीं थे वह तो तरनतारन में थे। अगर दूसरो की तरह गुरु जी ने खुसरो का साथ दिया होता तो उनके खिलाफ भी शिकायते मिलती लेकिन गुरु जी के खिलाफ कोई शिकायत नहीं थी। 23 मई 1606 इ:को नक्शबंदीओ के आगू शेख अहमद सरहंदी ने गुरु घर के दुश्मनो के साथ मिल कर एक झूठी कहानी घडी और जहाँगीर को कहा के गुरु अर्जन देव ने खुसरो को पनाह दी और उसको जीत होने के कामना की। तुजक जहागिरी में जहाँगीर लिखता है की गुरु घर के परचार से वह पहले ही बहुत परेशान था खुसरो की शिकायत ने उसको मौका दिया। 25 मई 1606 इ :को गुरु जी की ग्रिफ्तारी की खबर फैल गई।
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गुरु हरगोबिंद जी को गुरु गद्दी
गुरु अर्जन देव जी ने दीवान में ही गुरु हरगोबिंद जी को गुरु गद्दी संभाल दी। मुर्तजा खान ने गुरु जी को कैदी बना लाहौर मंगवाया और चंदू को सजा देने के लिए सौंप दिया। हो सकता है चंदू ने खुद जे मांग की हो अपनी पुराणी दुश्मनी निकालने के लिए।चंदू ने गुरु जी को बहुत कष्ट दिए। पहले दिन आप को उबलते पानी में बिठाया गया। अगले दिन आप के नंगे बदन पर गर्म रेत डाली गई। आप जी waheguru waheguru waheguru करते रहे आखिर चंदू ने आप जी को तत्ती तवी पर बिठा सिर में रेत डालने का हुक्म दिया। जब साई मिया मीर जी को इसके बारे में पता चला तो वह आप के पास दौड़े आए। उस समय तक बहुत देर हो चुकी थी और गुरु अर्जन देव जी का शरीर निढाल हो चूका था। गुरु जी को तत्ती तवी पर बैठे देख साई जी की रूह रो पड़ी।
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जिनको गरीबो और बेसहारो को लगर लगाए लाहौर की धरती पर उनको ऐसे देख आँखों से आंसू निकलने लगे। अंत 30 मई 1606 इ : को गुरु जी को रावी नदी में सूटवा दिया और आप waheguru में सदा के लिए समा गए। ………..
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