History Of Guru Angad Dev Ji In Hindi Language || 100% Orignal निम्रता की मूर्त स&#x
924;गुर की तमाम ज़िंदगी पर एक नज़र बहुत कम शब्दों मे HINDi
History Of Guru Angad Dev Ji In Hindi Language
- माता पिता :-सभराई जी छोटा नाम रामो जी ,फेरु मल जी
- जन्म स्थान :- मत्ते की सराए जिला फ़िरोज़पुर
- जन्म तिथि :- 31 -3 -1504 ई : , 5 वैसाख वदी 1 संमत 1561
- धर्मपत्नी :- माता खीवी जी
- संतान :– दासू जी ,दातू जी,बीबी अमरों जी ,बीबी अनोखी जी ,
- गुरयाई :- 2 -9 -1539 , 23 अस्सु संमत 1596 ( 12 .9 वर्ष )
- नगर स्थापित किए :- खडूर साहिब 1539 ई :
- जोति जोत :- 29 -3 -1552 ई : (3 वैसाख चैत्र सुदी 4 संमत 1609 , खडूर साहिब )
- बाणी रची :- कुल 63 श्लोक 10 वारा में।
- आयु :- 48 साल
- आपके समय के हुक्मरान :- हिमाऊ, शेर शाह सूरी ,ईस्लाम शाह सूरी।
History Of Guru Angad Dev Ji In Hindi Language
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जन्म वंशज और बचपन
श्री गुरु अंगद देव जी सिखों के दूसरे गुरु हुए है। श्री गुरु नानक देव जी महाराज जोति जोत समाने से पहले गुरता गद्दी के वारिस बना गए। चलिए आप को गुरु अंगद देव जी के तमाम जीवन बारे में बताते है। 1398 ई : के आस पास तैमूर जब भारत आया तो वह फिरोजपुर से मुक्तसर के रास्ते आया उन दिनों मत्ते की सराए वयापार के लिए काफी लोक प्रिये था। आप जी के पिता जी का नानका परिवार मत्ते की सराए में रहते थे। आपके दादके मंगोवाल जिला गुजरात के रहने वाले थे। आपके दादा गेहनु मल और पड़दादा सूरज मल वहां ही रहते थे। गेहणु मल के चार बेटे थे। भाई राजानी ,गुरया मल, फेरु मल और सब से छोटे अर्थी मल। आपके पिता जी फेरु मल जी नानके रहने लगे। उनकी शादी बीबी सभराई के साथ हुई। यहां इस जोड़े सभराई जी ,फेरु मल जी के घर 31 -3 -1504 ई : , 5 वैसाख वदी 1 संमत 1561 अमृतवेले हुआ। पिता फेरु मल जी खुद अच्छी पढ़ाई जानते थे इस इसलिए आपकी पढ़ाई का विशेष ध्यान रखा गया। बचपन में ही आपके मन में सेवा भावना थी। बच्चों को भी गलत कामो से वर्जते और उन्हें सचाई का रास्ता बताते।
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वयापार और शादी
आपकी शादी खडूर के साथ लगते गायों संघर के रहने वाले शाहूकार देवी चंद मरवाह खत्री की पुत्री बीबी खीवी जी के साथ 1521 को हुई। यह रिश्ता आपके बहुत करीबी माता विराई जी ने करवाया। बीबी खीवी जी का सुभाव आपके जैसा निर्मल और शांत था। शादी होने के कुछ दिनों के बाद बाबर ने हमला कर दिया जिसके चलते आपका सारा करोबार बंद पड़ गया। आपके पिता जी परेशान रहने लगे। कुछ समय के बाद हरीके पत्तन में शाहूकार का काम शुरु किया। ज्वाला मुखी माता हर साल संगत लेकर जाते। काम धंदा पहले जैसा चल पड़ा। फिर आप कुछ समय बाद आपने नमक का काम शुरु किया। संघर में थोड़े समय बाद आप के पिता जी का निधन हो गया। आपकी ज़िंदगी भगवान् का नाम लेते कटने लगी। आप के घर बेटा दासू का जन्म अगस्त 1522 को संघर में हुआ। फिर 2 साल बाद बीबी अमरो जी का जन्म हुआ। फिर बेटी अनोखी का जन्म हुआ सब से छोटे बेटे दातू का जन्म 1537 को खडूर साहिब में हुआ। बाद में आपने खडूर साहिब में ही दुकान डाल ली और वहां शाहूकार का काम करने लगे।
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गुरता गद्दी
एक बार आपके पास साधु आए। उनसे आप ने गुरु नानक देव जी की मेहमा सुनी। दिल में हुआ दर्शन के लिए जरुर जाएगी। कुछ दिनों के बाद आपने भाई जोध सिंह से आसा की वार की 21 पौढ़ी गा रहे थे। आप जी ने उनसे गुरबाणी सुन मन में लालसा और बढ़ गई। जब जथा लेकर माता के जा रहे थे तो करतारपुर आकर आपने जथे से आज्ञा लेकर चल पड़े। रस्ते में ही आपका मेल हो गया आप आपने पातशाह से उनके घर का ही रास्ता पूछा। फिर घर जाकर पातशाह के दर्शन कर मन बहुत खुश हुआ कीर्तन सुन मन टिक गया। माता के संग को वहां शोड गुरु जी के पास ही रुक गए। घर वापस लोट सारा कारोबार बच्चों को संभाल करतारपुर आ गए। गुरु दर पर सेवा करते करते अंगद बन गए। 2 -9 -1539 , 23 अस्सु संमत 1596 ( 12 .9 वर्ष ) में आपको गुरता मिली।
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बाणी और नगर स्थापित
गुरता गद्दी देकर गुरु नानक देव जी महाराज सचखंड चले गए। उनके जाने के बाद गुरु घर मर्यादा वैसे ही चलाई जैसे पातशाह खुद चला रहे थे। उनकी संगत की इतना असर हुआ की आप गुरु नानक का रुप ही बन गए। नाम की मेहमा बताते,लंगर में सेवा करते। तमाम आयु में आपने कुल 63 श्लोक 10 वारा में रचे। आप जी ने 1539 ई : में खडूर साहिब और विस्तार किया। आपके साथ माता खीवी जी लंगर की सेवा संभालते खुद भोजन पका कर बाँटते। बहुत संगत आपके दर पर आती जिसमे बहुत सिद्ध जोगी भी आते। आप उनको गुरबाणी उपदेश देते। इसतरह आपकी मेहमा चारो दिशाओ में फैल गई। हिमाऊ भी आपके दर्शनों के लिए आया।
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जोति जोत
आपने गुरता गददी की प्रथा ऐसे आगे बढ़ाई जैसे गुरु नानक देव जी ने आपके साथ।
जैसे आपकी परिक्षा हुई ऐसे ही आपके सेवको की हुई। आप जी ने 29 मार्च 1552 वाले दिन गुरु अमरदास जी को गुरता सौंप दी। चेहरे पर शांति थी। आपने ऊपर आप ही चादर तान लीं।दिन आप जी 29 -3 -1552 ई : (3 वैसाख चैत्र सुदी 4 संमत 1609 , खडूर साहिब में सचखंड चले गए।
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