History Of Guru Amar Das Ji In Hindi Language || 101 % Orignal आप जी ने अपनी तमाम ज़&
#x93F;ंदगी गुरु चरणों में अर्पित कर दी। हिंदी,पंजाबी में पूरी जानकारी कम शब्दों में।History Of Guru Amar Das Ji In Hindi Language
- माता पिता :-सुलखनी जी , तेज भान जी।
- जन्म स्थान :- बासरके जिला अमृतसर
- जन्म तिथि :- 5 -5 -1479 ई : , वैसाख सुदी 14 ,8 जेठ संमत 1536
- धर्मपत्नी :- मनसा देवी जी
- संतान :– मोहन जी ,मोहरी जी,बीबी दानी जी ,बीबी भानी जी ,
- गुरयाई :- 29 -3 -1552 , चेत 4 संमत 1609 ( 22 .6 वर्ष )
- नगर स्थापित किए :- गोइंदवाल बियास किनारे 1552 ई :
- जोति जोत :- 1 -9 -1574 ई : (असु पूर्णिमा संमत 1631 , गोइंदवाल )
- बाणी रची :- अनंद साहिब , कुल 907 शब्द , श्लोक और शंतः 17 रागो में।
- आयु :- 95 साल
- आपके समय के हुक्मरान :- फिरोज शाह , मुहामद,आदिल शाह ,हिमऊ ,अकबर
History Of Guru Amar Das Ji In Hindi Language
जन्म और वंश
श्री गुरु अमरदास जी महाराज सिखो के तीसरे गुरु हुए है। आपके वंश के बारे में भट्ट सल जी ने सवैये में बहुत अच्छे से बताया है। आप के वंश भल्ले थे और सब से पहले आपके वंश में से राम नारायण जी बासरके में आए। उनकी संतान में सी भाई बिशन दास जी बासरके दूकान करा करते थे। उनके घर एक पुत्र पैदा हुआ उसका नाम हर जी रखा गया। भाई हर जी शादी कर लहोर के नज़दीक गिलवाली में रहने लगे। उनके घर एक पुत्र हुआ जिसका नाम तेज भान रखा गया। तेज भान की शादी बचपन में कर दी गई और हर जी वापस बासरके आकर रहने लगे। गुरु अमरदास जी का जन्म सुलखनी जी , तेज भान जी के ग्रह में 5 -5 -1479 ई : , वैसाख सुदी 14 ,8 जेठ संमत 1536 को हुआ। आपके तीन भाई थे। दूसरे भाई ईशरदास जिनके सपुत्र भाई गुरदास थे। तीसरे बाबा खेम राए जी जिनके सपुत्र सावन मल थे। चौथे भाई मानक चंद जिनके सपुत्र भाई जसु जी थे जिनकी शादी गुरु अंगद देव जी सपुत्री बीबी अमरो जी के साथ हुई थी। घर में सबसे बड़े थे इसलिए दूकान पर बैठने लगे। बचपन से ही आप धर्म कर्म में ज़्यादा रुचि रखते थे। घर में आए साधु संतो की सेवा करते।
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शादी और संतान
आपका स्भाव बहुत शांत था। जब भी आपके माता पिता जी आपसे शादी की बात करते तो आप टाल देते। आपके तीनो छोटे भाईओ की शादी आप से पहले हो गई। आपकी शादी स्यालकोट के नज़दीक सनखतरा गाओं के बहल घराने के देवी चंद की सपुत्री मनसा देवी के साथ हुई। उस समय आपकी आयु 28 साल की थी। संमत 1556 माघ 11 (27 नवंबर 1502 ई:) को जे शादी हुई। 40 साल की आयु के बाद आपके घर 1534 इ: को बीबी भानी जी हुए। उनके बाद बाबा मोहन जी और बाबा मोहरी जी का जन्म हुआ। यहां रहते आप जी ने तलाब का निर्माण करवाया। इस तलाब के किनारे ही भाई जेठा जी घुँघनीआ बेचने आया करते थे।
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गुरता का मिलना
बीसवीं यात्रा के वापस आते समय आपको एक ब्रमचारी ने निगुरा बोल दिया तब से आप के मन में एक गुरु के लिए बहुत तड़प थी। एक सुबह भाई के घर से गुरबाणी की आवाज़ आ रही तो आप जी दीवार से कान लगा सुन रहे थे। बीबी अमरो से गुरबाणी सुन खंडूर साहब जाने की इच्छा जहर की। खंडूर जाकर गुरु जी के दर्शन कर आप वहां के होकर रह गए। पूरे 12 साल आपजी ने गुरु घर में सेवा की। हर रोज आप जी वयास से पानी की गागर भर कर लाते और गुरु जी को ईशनान करवाते। बहुत सी मुश्किलो आप को सहनी पड़ी। बहुत सी बातें सुनी लेकिन गुरु घर से सनेह कम नहीं हुआ। बहुत परीक्षा के बाद 29 -3 -1552 , (चेत 4 संमत 1609) की सुबह गुरु जी ने दीवान में बोल दिया की अब समय आ गया है। और वहां आपको गुरता की जिमेवारी सौंप दी।
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बाणी और नगर स्थापित किये
आप जी ने मंजी प्रथा शुरु की। पर्दे की रस्म खत्म की सबसे बढ़कर सती प्रथा का खातमा कर विध्वा की शादी की प्रथा को चला एक नई क्रांति ले आए। आप जी ने तमाम जिंदगी में अनंद साहिब , कुल 907 शब्द , श्लोक और शंतः 17 रागो में रचे। गोइंद नाम के मरवाह ने आधी ज़मीन गुरु घर को दे दी। गुरु जी की आज्ञा पा आप जी ने गोइंदवाल, बियास किनारे 1552 ई : में नाम का शहर स्थापित किया। आप जी ने एक बाउली का निर्माण भी कराया। आप जी ने अपनी तमाम ज़िंदगी गुरु चरणों में अर्पित कर दी। हर रोज संगत को गुरबाणी का उपदेश देते ,आप जी ने गुरु नानक देव जी की चल रही मर्यादा को इन बिन आगे बड़ाया।
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जोती जोत
आप जी की कृपया से ही अमृतसर शहर बसा। यह शहर तुंग गाओं के जिमीदारो से ज़मीन खरीद कर बनाया गया। 3 सतंबर 1574 ई: संमत 1631 भादो की पूर्णिमा के दिन आप जी चुबारे से नीचे आ रहे थे। आप जी ने अपनी बेटी को बोला के पुत्र अगर तुम्हारा सुहाग न रहे तो। आप के बोलने से पहले वह बोले जैसे आप जी का हुक्म होगा वैसे ही होगा। तो आप जी ने अपनी आयु से 6 साल 11 महीने 18 दिन गुरु रामदास जी को दे दिए। आप जी ने गुरु घर की चली आ रही मर्यादा अनुसार गुरता की जिमेवारी भी संगत के सामने गुरु रामदास जी को दे दी। आप जी के अंतले शब्द आपके पोत्रे बाबा सूंदर जी ने लिख लिए। जो रामकली सद के सिरलेख में गुरु ग्रन्थ साहिब में दर्ज है। संगत का बहुत हजूम आ गया सारा परिवार आपके पास था।
1 -9 -1574 ई : (असु पूर्णिमा संमत 1631 , गोइंदवाल ) को आप जी जोति जोत समै गए। आप जी की आयु 95 साल की हुई।
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