bhai jai singh ji khalkat || सरहंद से २५ किलोमीटर &#x
926;ूर बारन गायोंके बाहर ,,,,
bhai jai singh ji khalkat in hindi
सरहंद से २५ किलोमीटर दूर बारन गायों
के बाहर बाहर गुरु गोबिंद सिंह जी का सिंह कुए पर ईशनान कर रहा था। दूर से सुनने में एक हलकी सी ध्वनि कानो पे पड़ रही थी वाहेगुरु,,,,,,,,,,,,,,,,,वाहेगुरु,,,,,,,,,,,,,,,वाहेगुरु ,,,,,,,,,,,,,,,अचणचेत पास कुछ सैनिक आन खड़े हुए। गुरु का सिंह अपनी ही धुन में वाहेगुरु ,,,,,,,,,,,,,,,वाहेगुरु,,,,,,,,,,,,वाहेगुरु ,,,,,,,,करता रहा।
सैनिको ने बाबा जी की तरफ घूरा और कहा तुम्हे दिखाई नहीं दे रहा ,,,,,हम आए है। अभी तक तूने सलाम भी नहीं बुलाई हमे। निम्रता से भरी आँखों से देखा तो सामने सैनिको की फौज खड़ी थी। बाबा जी बोले मुझे आप के आने का पता नहीं चला। मेरा ध्यान गुरु के चरणों में जुड़ गया था।
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कोतवाल गुस्से से बोला और वजन उठाकर पटिआला छोड़ कर आने का हुकम किया। उन दिनों अहलकारों का बोझा उठाने की रीत हुआ करती थी।
यह वजन जरनैल अब्दुल समद खान का था जो अपने कोतवाल नज़मुद्दीन और लाम लश्कर को लेकर मुग़ल माज़रा गायों के बाहर रुका था। bhai jai singh ji khalkat
वजन ,,,,,,,,,,,,,,,,,,बहुत निम्रता के साथ आप कोतवाल को बोले की वजन में कौन सी वास्तु है। कोतवाल गुस्से में बौखलाया।,,,,,,,लाल पीला हुआ बोला। तुम कौन होते हो यह पूछने वाले। …..इस गुस्ताखी की सज़ा मालूम है तुझे।,,,,,,,,,,शाही हुक्का है उस में तुम बोलो ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
हुक्का लफ्ज़ सुनते सार ही बाबा जी ने मना केर दिया ,,,
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बाबा जी के मना करने पर कोतवाल बोला के तुझे इस गुस्ताखी की सज़ा दी जाएगी। गुस्से में सैनिको को बोला मार मार कर इसकी चमड़ी उधेड़ दो। थोड़ा सोचने के बाद कोतवाल बोला चल ऐसा कर सिखी छोड़ दे और हमारा वजन उठा कर मंज़ल पर छोड़ आ हम तेरी गुस्ताखी माफ़ कर देंगे। अगर तुम अभी भी मना करोगे तो। ………तरह उलटा करकर खाल उधेड़ दी जाएगी।
बाबा जी अपनी बात पर अटल रहे। कोतवाल के बार बार पूछने पर साफ मना कर दिया।
गायों से दो कसाई बुलाए और देखते ही देखते बाबा जी को जोड़े पीपल और बरगद के पेड़ से उल्टा लटका पाओं के अंगूठे से शुरु कर सारी चमड़ी उधेड़ शहीद कर दिया …………
वह वही नहीं रुके बाबा जी की पत्नी माता धन कौर जी दो पुत्तर बड़े का नाम कड़ाका सिंह छोटे का नाम खड़क सिंह उसी जगा बुलाकर कोह कोह कर शहीद कर दिए गए। बाबा जी की दोनों नूहो को भी पकड़ लिया गया। भाई कड़ाका सिंह की पत्नी गर्भबती थी वह किसी तरह आंख बचाकर निकलने में कामयाब रही। वह गिरती चलती अंबाला जा पुहंची। वहां उसने बच्चे को जन्म दिया। दूसरी नूह पर जालमो ने रहम नहीं किया बाकि परिवार के साथ ही मौत के घाट उतार वहां से चले गए। बाद में सभी गायों वालो ने इकट्ठे होकर परिवार का संस्कार किया। यह घटना चेत सुदी दसवीं समत १८१० की है। उस महान बाबा का नाम बाबा जय सिंह जी खलखट था।
संसार में ऐसे चार महान योद्धे हुए है जिनकी चमड़ी उतारकर शहीद किया गया।
पहला शमश तबरेज़।
.दूसरा शमसद्दीन मुहामद,,,,
तीसरे शहीद भाई गुलज़ार सिंह। ……और चौथे जिनके जीवन के बारे में आज आपसे बात की बाबा जय सिंह जी खलखट जी। …………..
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